शनिवार, 19 मई 2012

उजली-उजली चाँदनी से धुली हुई......

:उजली-उजली चाँदनी से धुली हुई: रचनाकार:अमित सर:
  उजली-उजली चाँदनी से धुली हुई
जिंदगी की किताब सी खुली हुई
मीठी-मीठी किसी बच्चे की जुबान सी
मेरी प्रियतमा है मिश्री में घुली हुई ।।1।।

आँखों में प्रेम की मशाल जली हुई
शब्दों में अभिव्यक्ति कुछ संभली हुई
मैं बन गया रास्ता प्यार का
मेरी प्रियतमा ईश्क की गली हुई ।।2।।

शब्द-शब्द उसका लगे गीता का स्वर
वाणी उसकी फूलों सी विनम्र; काँटों सी प्रखर
लयबद्ध महाकाव्य सुनाती हुई
मेरी प्रियतमा आई है गुनगुनाती हुई।।3।।

मेरे सवालों की अनंत श्रृंखला का
लगती है वो एकमात्र प्रतिउत्तर
मेरी उलझनों को सुलझाती हुई
मेरी प्रियतमा संग है मुझे बहलाती हुई।।4।।

जुगनुओं की बस्ती, तम में आशा की किरण
दुःख में जैसे ईश्वर का हो स्मरण
प्रतिपल करूँ मैं उसी का सुमिरन
मेरी प्रियतमा आज उत्कृष्ट याद हुई।।5।।

मंदिर में माँगी हुई मन्नत कोई
मिल जाए मुझे, दे दी हैं मैने अर्जी
लो आज फिर एक अद्भूत बात हुई
मेरी प्रियतमा सर्वोत्कृष्ट फरियाद हुई।।6।।

बंद पलकों में छिपा सपना कोई
बिन मिले ही मिला अपना कोई
बिती बातों को सुनाती-सुनती हुई
मेरी प्रियतमा यादों को चुनती हुई।।7।।

खामोशियों में भी खुद को करती बयाँ
देती रोशनी होती हो जब रात स्याह
प्यार की दासतान को बुनती हुई
मेरी प्रियतमा मेरे प्रेमपत्र सुनती हुई।।8।।

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