:कुछ भी नहीं : रचनाकार:अमित सर : |
दिल की बातें दिल में रह गयी , जुबाँ पे आया कुछ भी नहीं
सोचा बहुत था, पर आई जब तुम, हमने बताया कुछ भी नहीं
कभी ये मोती, कभी ये शबनम , तुम्हारा कतरा गंगाजल
नम
गम तो यहाँ भी दबे बहुत थे, हमने बहाया कुछ भी नहीं
बादल,
बिजली, सूरज , चंदा,
तारें, मौसम सब तुम हो
जो कुछ था सब तुमपे लुटाया, हमने बचाया कुछ भी नहीं
दुःख सब मेरे, सुख सब तेरे, हम है तेरे गम के लुटेरे
दर्द की वैसे खेती की है, तुझे भिजवाया कुछ भी नहीं
चंचल आँखें, नाजुक बातें , चाँद सा चेहरा
, जुल्फें रातें
एक झलक में इतना सब कुछ, अभी दिखाया कुछ भी नहीं
बदन धूप का, खिले रूप का, फूल-सी खुशबू , अल्ला हू
सारी नेमत तेरे हिस्से , हमने पाया कुछ भी नहीं
तेरा पसीना ओस की बूंदें , आसूं तेरे गौहर हैं
हम जो हँसें तो बने गुनाह, तूने जो रुलाया कुछ भी नहीं
पता हैं तूने पिया न पानी, चाँद जो तुझको दिखा नहीं
मैंने भी है साथ निभाया , सुबह से खाया कुछ भी नहीं
मेरी बरकत, मेरी शोहरत, सब तुझसे ही रोशन हैं
जो कुछ है सब तेरा है, मेरा कमाया कुछ भी नहीं
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