:शाळा : रचनाकार: अमित सर: |
तेरे जाने से - आने तक का वक़्त ....
कितना लम्बा होता है!!!
वो गलियों में तेरा इंतज़ार ...
मन में उलझन - दिल बेक़रार
हर इक मोड़ पर तू ही तू
हर परछाई से धोखा होता है ...
वो स्कूल में period off हो जाना
तुझसे मिलने का अच्छा मौका होता है …
पर ये off period बड़ी जल्दी बीत जाते है ...
ये कितने लम्बे होते है जब सर पढ़ाते है !!!
वो आखरी बेंच पर बैठकर -तुझे ताकना
तू देख ले तो खिडकियों से झाँकना
दोस्तों के बीच लम्बी-लम्बी हाँकना....
कितना लम्बा होता है!!!
वो गलियों में तेरा इंतज़ार ...
मन में उलझन - दिल बेक़रार
हर इक मोड़ पर तू ही तू
हर परछाई से धोखा होता है ...
वो स्कूल में period off हो जाना
तुझसे मिलने का अच्छा मौका होता है …
पर ये off period बड़ी जल्दी बीत जाते है ...
ये कितने लम्बे होते है जब सर पढ़ाते है !!!
वो आखरी बेंच पर बैठकर -तुझे ताकना
तू देख ले तो खिडकियों से झाँकना
दोस्तों के बीच लम्बी-लम्बी हाँकना....
तेरे डाँटने को दोस्तों में हाँ बताना…
दिल-ही-दिल में रोना ...
पर किसी को न जताना ...
कभी - कभी तेरा यूँ रूठ जाना ...
रास्ता बदलकर स्कूल तक आना …
कभी भाई - कभी बाप को लाना ….
वो क्लास टीचर से शिकायत करवाना ….
सब कुछ मैं झेल गया बड़े प्यार से
बस ये सोचकर के - तू मान जायेंगी
कभी तो पिघलेंगी,मुझे जान जायेंगी
दिल-ही-दिल में रोना ...
पर किसी को न जताना ...
कभी - कभी तेरा यूँ रूठ जाना ...
रास्ता बदलकर स्कूल तक आना …
कभी भाई - कभी बाप को लाना ….
वो क्लास टीचर से शिकायत करवाना ….
सब कुछ मैं झेल गया बड़े प्यार से
बस ये सोचकर के - तू मान जायेंगी
कभी तो पिघलेंगी,मुझे जान जायेंगी
पर कितना पगला था मैं ,समझता नहीं था
जिन्दगी प्यार से नहीं , पैसों से चलती है
जिन्दगी प्यार से नहीं , पैसों से चलती है
जाति से आदमी की हैसियत तुलती है
और,इन झमेलों के बीच…
और,इन झमेलों के बीच…
मोहब्बत झूलती है …
पर जानती हो तुम -
उस स्कूल के सामने से गुजरते हुए
अब भी तुम बहुत याद आती हो ....
लगता है अब बेल बजेंगी,स्कूल छूटेंगा
और, सफ़ेद - नीली फ्रॉक में
उस स्कूल के सामने से गुजरते हुए
अब भी तुम बहुत याद आती हो ....
लगता है अब बेल बजेंगी,स्कूल छूटेंगा
और, सफ़ेद - नीली फ्रॉक में
तुम अपनी साईकिल पर
इन गलियों से गुजरोंगी
तो फिर एक बार मैं
कोशिश में लग जाऊंगा
पता नहीं..... मुझको
क्या तुमसे कह पाऊंगा???
पर अचानक ठक-से
ये सपने टूट जाते है
जब दुनिया के सच
मुझको बुलाते है
क्यों हम अपने सपनो को सुलाते है ???
दुनिया की जद्दोजहद में ....
हम खुद ही खो जाते है ....
तो फिर एक बार मैं
कोशिश में लग जाऊंगा
पता नहीं..... मुझको
क्या तुमसे कह पाऊंगा???
पर अचानक ठक-से
ये सपने टूट जाते है
जब दुनिया के सच
मुझको बुलाते है
क्यों हम अपने सपनो को सुलाते है ???
दुनिया की जद्दोजहद में ....
हम खुद ही खो जाते है ....
पर सच कहूं वो स्कूल के दिन
बहुत याद आते है…
वो स्कूल के दिन बहुत याद आते है….
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