रविवार, 27 मई 2012

काकस्पर्श .....

:काकस्पर्श: रचनाकार: अमित सर:

जो शरीर से परे हो वो प्यार माँगता हूँ
तुम्हारी अंतरात्मा का द्वार माँगता हूँ


आँखों से भी तो तुम छू सकती हो मुझको

"गीता" न सही गीता का सार माँगता हूँ

दुनिया के बन्धनों ने रोक रखा है मुझको

थोड़े-से दर्द सह लो
, इंतजार माँगता हूँ

कब तक खामोश-सा तुझको चाहता रहूँगा

तेरा हाथ मेरे हाथों में यार माँगता हूँ


तेरा मासूम चेहरा और शांत भावनाएँ

तू बन जा उर्वशी
,मैं मल्हार माँगता हूँ

ये दुनिया बहुत उँगलियाँ उठाती रहेंगी

तुझसे थोडा संयमित व्यवहार माँगता हूँ


दर्द
,तड़प,बेबसी कहीं तोड़ ना डाले अब
तू जीत जा जिन्दगी
, मैं हार माँगता हूँ

आती है अगर मौत तो मोहब्बत से आये

विरह
- वेदना का प्रहार माँगता हूँ

मेरी गज़ल का लहजा क्यों तल्ख़ हो चला है

तू सामने आ जा
,मैं विचार माँगता हूँ

माँ और ॐ में तो दुनिया समाई है

तू दे
, मैं नया कोई उच्चार माँगता हूँ

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