जिंदगी तुम्हारी नज़र कर रहा हूँ
खुद पे ये कैसा कहर कर रहा हूँ
तुम्हें चाहता हूँ कितना टूटकर मैं
ग़ज़लों से अपनी खबर कर रहा हूँ
होकर के दूर तुमसे ,तुम्हे चाहूँगा मैं
तुम्हारी भावनाओं की कदर कर रहा हूँ
तुम तो रुक गयी,राहों में प्यार की
पर अब भी मैं ,सफ़र कर रहा हूँ
यादों को तुम्हारी हृदय में जलाकर
स्याह रातों को ,सहर कर रहा हूँ
तुम्हें शायद ये पता ही नहीं है
तुम्हारे सहारे ,गुजर कर रहा हूँ
खुद पे ये कैसा कहर कर रहा हूँ
तुम्हें चाहता हूँ कितना टूटकर मैं
ग़ज़लों से अपनी खबर कर रहा हूँ
होकर के दूर तुमसे ,तुम्हे चाहूँगा मैं
तुम्हारी भावनाओं की कदर कर रहा हूँ
तुम तो रुक गयी,राहों में प्यार की
पर अब भी मैं ,सफ़र कर रहा हूँ
यादों को तुम्हारी हृदय में जलाकर
स्याह रातों को ,सहर कर रहा हूँ
तुम्हें शायद ये पता ही नहीं है
तुम्हारे सहारे ,गुजर कर रहा हूँ
जिंदगी तुम्हारी नज़र कर रहा हूँ
खुद पे ये कैसा कहर कर रहा हूँ
खुद पे ये कैसा कहर कर रहा हूँ
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