शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

कलियों की हुकूमत !!!



टूटकर आँसमा से पानी का कतरा
तेरे सुर्ख होठों पर आकर के ठहरा
कहो तुम,इसे तो,हटा दूँ वहां से
लगा दूँ  तेरे सुर्ख होठों  पे पहरा
ये अधरों की रंगत गुलाबी-गुलाबी
उस पर ये रोशन उजालों सा चेहरा
इन कलियों की मुझको हुकूमत तुम दे दो
छू लेने दो नाजुक ये चेहरा सुनहरा
कंचन -सी बाँहों में कास लो मुझे भी
ह्रदय से ह्रदय का मिलन होवे गहरा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें