शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

शहीद की बेवा.....

ये हवा तुम्हारी जुल्फों से
उलझती हुई ......
जब गिराती है लटों का
पर्दा चेहरे पर ......
लगता है शफ़्फ़ाख़ आसमान पर
घटाएँ - सी है .....
और उन घटाओं से झाँकता
तुम्हारा खामोश चेहरा ......
जैसे शाम का ढलता सूरज हो
विदा होते हुए ....
वो बोलती-सी तुम्हारी आँखें ...
के अब आ भी जाओ !
वो चुप-चुप से होंठ ...
वो शाम-सी उदासी
चेहरे पर तुम्हारे ......
पर फिर भी तुम कितनी
ख़ूबसूरत लगती हो !!!
माना की दुःख में हो
पर मोहब्बत लगती हो .....
और हाँ इतनी उदासी में भी
बालों में गुलाब लगाना नहीं भूली तुम ......
जानता हूँ इस आस में ....
के मैं आऊँगा!!!
पर जानती हो तुम्हारी
लटों के पीछे से झाँकते हुए
चेहरे की उदासी .....
तुम्हारी आँखों के अनकहे शब्द ....
तुम्हारे होठों की गुमसुम सी हँसी.....
सब लौट आएँगी !!!
जब तू बच्चों को अपने ,
शहीद बाप के किस्से सुनाएँगी!!
उस दिन तेरे खामोश चेहरे की
रौनक लौट आएँगी !!
अरे हँस दे के ...
अब तक कहलाती थी जवान की बीवी ....
आज से तू शहीद की बेवा कहलाएँगी !!!
आज से तू शहीद की बेवा कहलाएँगी !!!
— Akash Sahu के साथ |




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