शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

मेरे अन्दर कुछ तड़प रहा है .....



मेरे अन्दर कुछ तड़प रहा है .....
तुझसा - ही !!!
जलती है तू मेरी
धड़कन में लौ बनकर...
इक दीया है जो बुझता नहीं ....
है तुझसा ही !!!
न शब्द,न आसूं ....
बस....
ख़ामोशी....
सन्नाटा है ....
पर हवा के जैसा बहता है...
कुछ तुझसा ही!!!
किसी पुरानी किताब के
बिखरे पन्नों में...
सिमटा हुआ एक अफसाना
पलता है दिल में ...
बस तुझसा ही !!!
किसी दिन
मन की आखों से
तुम पढ़ लेना ...
जओंगी समझ तुम...
दीवाना होता है ...
मुझसा- ही !!!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें