रविवार, 17 दिसंबर 2023

पापा ❤️

 मुश्किलों में जब भी पलटकर देखता हूँ
मेरे पीछे खड़े,आप नज़र आते है!
नहीं है आप,मगर साये की तरह
हम आपको अपने,करीब पाते है!
दुनिया हमदर्दी जताती है सिर्फ
"दर्द" तो बस "पापा" समझ पाते है!
आपकी तस्वीर मैं देखता नहीं
बेसबब बस आँसू निकल आते है!
जब होते है तो कद्र करते नहीं
नहीं होते है तो बस पछताते है!
बाप की सख़्ती का जो मर्म न समझे
वो नादाँ जिंदगी को कहाँ समझ पाते है !

धीरे -धीरे ख़ामोशी से....

 सब कुछ होता है
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

कतरा - कतरा उड़ती है बुँदे
तिनका -तिनका कचरा बनती
पूरी नदी खा जाते है हम
समंदर भी खा जाएँगे
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

धीरे-धीरे धंसती है मिट्टी
थोड़ा-थोड़ा कटता है परबत
एक-एक पेड़ करके
पूरा जंगल निगल जाएँगे
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

मिट जाएँगे रिश्ते सारे
कट जाएँगे दोस्त सारे
वर्चुअल कितने होंगे हम
देखना परिवार मिट जाएँगे
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

पहले थोपेंगे अपने
मीठे-सीधे विचार
फिर गुलदस्ते से एक -एक
फूल निकाले जाएँगे
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

फिर भर देंगे वें
आपको गर्व से
इतिहास के अबोध
बोध से मिलवाएंगे
धीरे -धीरे ख़ामोशी से...

फिर सरकेंगी एक-एक ईंट
दरकेंगा धीरे-धीरे घर
सिर्फ ऊँगली पर स्याही लगाकर
सेल्फी खिंचवाते रह जाएँगे
पर देखना....
ये सब कुछ होगा...
धीरे -धीरे ख़ामोशी से....
लोकतंत्र का उत्सव
ख़त्म होगा....
श....श.... चुप रहिए....
ये सब होगा
धीरे-धीरे खामोशी से....
क्योंकि..
सब कुछ होता है...
ऐसे ही...
धीरे -धीरे ख़ामोशी से!