शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

मेरे अन्दर कुछ तड़प रहा है .....



मेरे अन्दर कुछ तड़प रहा है .....
तुझसा - ही !!!
जलती है तू मेरी
धड़कन में लौ बनकर...
इक दीया है जो बुझता नहीं ....
है तुझसा ही !!!
न शब्द,न आसूं ....
बस....
ख़ामोशी....
सन्नाटा है ....
पर हवा के जैसा बहता है...
कुछ तुझसा ही!!!
किसी पुरानी किताब के
बिखरे पन्नों में...
सिमटा हुआ एक अफसाना
पलता है दिल में ...
बस तुझसा ही !!!
किसी दिन
मन की आखों से
तुम पढ़ लेना ...
जओंगी समझ तुम...
दीवाना होता है ...
मुझसा- ही !!!!

जहर तो प्यार की निशानी है .........




  जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
  जहर तो प्यार की निशानी है .........
  आप आइये और मेरे साथ बैठिये जरा
  सुनिए जहर की भी अपनी कहानी है ...

१) एक गरीब माँ अपने बच्चों की रोटी के लिए
  रही बेचती जिस्म अपना बाज़ार में
  जब बच्चें हुए बड़े और जाना ये सब
  छोड़ आए माँ को अपनी मझधार में
  उसने कोई शिकवा और शिकायत न की
  पी गयी जहर जिल्लत का बच्चों के प्यार में
  न जाने ये कितनी माँओं की कहानी है 
  जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
  जहर तो प्यार की निशानी है .........

२) एक बूढा था इस देश में कभी
  सारा जीवन दूसरों के नाम किया था
  अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर
  हमेशा अपने देश के लिए जिया था
  पर लगा दी लोगो ने उसपर भी तोहमत बटवारे की
  पी गया वो जहर तोहमत का देश के प्यार में
  न जाने ये कितने देशभक्तों की कहानी है
  जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
  जहर तो प्यार की निशानी है .........

३) कहते है हुआ था समुद्रमंथन कभी
  अमृत भी निकला था उसमे और गरल भी
  स्वार्थ लोलुपों ने अमृत छक-छक कर पिया
  पर छुआ नहीं उन्होंने गरल को कभी
  ऐसे में आये भोले-भाले शिवशंकर वहीँ 
  और पिया जहर शिव ने अपनों के प्यार में
  न जाने ये कितने शंकरों की कहानी है
  जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
  जहर तो प्यार की निशानी है .........

४) एक पतिव्रता थी जिसने पति के लिए
  त्यागा राज-पाट और गयी जंगल की ओर
  पग-पग पर दिया साथ उसने अपने पति का
  पति के ही संग बंधी रही उसके मन की डोर
  पर उसे भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा
  पी गयी वो जहर कलंक का पति के प्यार में
  न जाने ये कितनी पत्नियों की कहानी है
  जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
  जहर तो प्यार की निशानी है .........

वो कॉलेज के दिन ....

वो कॉलेज के दिन ....
यादें रंगीन....
हर पल हसीन....
उधम और मौज ....
वो दोस्तों की फ़ौज....
कॉलेज की भीड़ में ....
एक चेहरे की खोज !!!
वो गलियारे कॉलेज के...
वो क्लास , वो लेक्चर ...
अटेंडेंस के चक्कर....
वो बंक, वो उमंग ...
मस्ती की तरंग !!!
वो प्रोजेक्ट , असाइनमेंट  
के झंझट निराले ....
कट-कॉपी पेस्ट करके ...
हमने कर डाले !!!
वो इक्साम का टेंशन ...
हरपल अटेंशन ...
रातों को जागना....
सुबह-सुबह भागना ...
वो नागपुर यूनिवर्सिटी
की सप्लीमेंट निराली ...
वो कागज़ रंगाना...
वो पन्ने भराना !!!
फिर रिजल्ट के इंतजार में ....
महीने कट जाना....
वो नेट पर ढूँढना ....
नम्बर अपनों के ....
वो ATKT  का अद्भुत सहारा...
सब एक दिन सपनों के
जंगल में खो जायेंगा ...
देखना एक झटके में
लास्ट सेमिस्टर हो जायेंगा !!!!

शब्दहीन है 'प्रेम' परिभाषा !!!



प्यार की है अपनी ही भाषा
आखें छलकायें अभिलाषा

चुप-चुप रहना;कुछ-कुछ कहना
कहो न कुछ भी;जगती-आशा

कहें न कहें ? रूठ गयी तो ...
इतना सोचा;छाई निराशा

होठ मौन है;आँख मुखर है
शब्दहीन है 'प्रेम' परिभाषा

धरती, अम्बर, चाँद, सितारे !!



धरती, अम्बर, चाँद, सितारे
इक तू जीती , ये सब हारे

नदिया,झरने,परबत,जंगल
तेरे आगे , फीके सारे

आसूँ-मोती,आँखें-सीपी
सारी बातें तेरे सहारे

लड़ना-झगड़ना,रूठना-रोना
प्यार के दुःख है कितने प्यारे

जीना-मरना, पाना- खोना
प्यार दिखाए कैसे नज़ारे

बादल, बूंदें, बारिश, खुशियाँ
तेरे बिन गुमसुम है सारे

प्रेम-समर्पण, भक्ति-शक्ति
प्यार में तेरे कितने इशारे

गम-ख़ुशी, आसूँ-मुस्कान
सरे परिवर्तन तेरे सहारे

इस बिस्तर का दिल धडकने लगा है !!!



इस बिस्तर का दिल धडकने लगा है , तेरी कुछ सिलवटें इसमें बाकी है
लगता है अभी अंगड़ाई लेके खुशनुमा हो जायेंगा, तेरी कुछ करवटें इसमें बाकी है

लोग कहते है , मै मर गया, सांस रुक गयी, जी थम गया
कमबख्त जानते नहीं , तू दिल में है, तेरी कुछ आहटें इसमें बाकी है

सारा चमन उजड़ा , सुखी कलियाँ , फूलों ने दम तोड़ दिया
तूने छुआ था वो फूल जिन्दा है, तेरी कुछ मुस्कुराहटें इसमें बाकी है

मंदिर, मस्जिद , गुरूद्वारे सब बेजान इमारते थी पत्थर की ढह गयी
मेरा दिल आबाद है अब भी , तेरी कुछ बनावटे इसमें बाकी है

आसमान की गोद हुई सूनी , कुछ बादल रूठे, कुछ छुटे
मेरे दिल में घटाएँ अब भी उठती है , तेरी कुछ लटें इनमे बाकी है

कह दो प्रिये , मुझपर तुम्हे विश्वास है ना !!!




सबने मेरी क्षमताओं को कमतर है  माना
जानता   हूँ  मैं  क्या  है  मेरा      ठिकाना
थोडा     ऊँचा     उड़ने की ये प्यास है ना
कह दो प्रिये , मुझपर तुम्हे विश्वास है ना


चाहता    हूँ     मैं   तुम्हारा  साथ  हरदम
चाहता हूँ लिखूं शोलों पे दास्ताने  शबनम  
कितनी  असंभव-सी ये  मेरी आस है  ना
कह दो प्रिये , मुझपर तुम्हे विश्वास है ना


अपने लिए जी कर करे जीवन को छोटा
मुश्किल   है मेरे   लिए  ऐसा  समझौता
तुम   कहो  सच्चा मेरा  अहसास  है  ना
कह दो प्रिये , मुझपर तुम्हे विश्वास है ना


तुम  धरा  पर  आई  सिर्फ  मेरे लिए हो
क्या फर्क जो न संग हमने फेरे लिए हो
अपना  ये  रिश्ता   कुछ  तो  ख़ास  है ना
कह दो प्रिये , मुझपर तुम्हे विश्वास है ना

मित्र !!



गुलाब,कस्तूरी,लोबान, इत्र - क्या है तू ?
खुशबू का बदन लिये, मेरी मित्र - क्या है तू ?

तुझे देखकर आँखें पाकीजा हो जाती है
गंगा, यमुना या आकाशगंगा पवित्र - क्या है तू ?

तेरे होने से क्यों ख़ुशी सी महसूस करता हूँ
उज्वल,खुशनुमा, अनसुलझा चरित्र - क्या है तू ?

तेरी इक तस्वीर में सारे रंग कुदरत के
खुदा के कैनवास पर बना चित्र - क्या है तू ?

विनम्र , करुणामयी, ममता की मूरत
इन्सान है या संत , ऐ सतचरित्र - क्या है तू ?