रविवार, 28 मई 2017

मैं रावण हूँ .....

मैं रावण हूँ .....
मुझे कभी , समझा ही नहीं गया !
मेरे अट्टहास में मेरी
मृदुल  हँसी को दबा दिया गया
मेरा गीत ,मेरा संगीत भी
भुला दिया गया
मैं रावण हूँ .....
मुझे कभी , समझा ही नहीं गया !


कहा गया मुझे
सबसे बड़ा खलनायक
नहीं रहा मेरा
नाम भी रखने लायक
सोचता हूँ था क्या
मैं सचमुच इतना नालायक
मेरा पक्ष तो कभी
सुना ही नहीं गया
मैं रावण हूँ .....
मुझे कभी , समझा ही नहीं गया !

अगर बहन के
सम्मान की रक्षा पाप है
तो मानता हूँ गर्व से
ये पाप मैंने किया है
सीता का हरण किया
पर उसे सम्मान पूरा दिया है
मैं लड़ा इसलिए कि
झुकना मुझे मंजूर न था
जानता था मुझे हारना ही है
पर घुटने टेकूँ इतना कमजोर न था
मैंने युद्ध चुना लंका के
स्वाभिमान के लिए
मैं भिड़ा केवल अपने
आत्मसम्मान के लिए !

क्या लगता है आपको
मैं नहीं जानता था राम कौन है ???
क्या नहीं मानते आप कि मैं भी महापंडित था
भक्त था ,राजा था ,वादक था ,साधक था
कहिये न क्यों अब आप मौन है ???
सोचता हूँ कभी-कभी
क्या इतना बुरा था मैं ???
क्या यही अपराध था मेरा
कि स्वाभिमान का युद्ध लड़ा था मैं ???

लक्ष्मण ने तो सूर्पनखा की
नाक काट दी थी
पर मैंने तो सीता को
छुआ तक नहीं !
जानता था मैं प्रेम
औरत की ओर से उपहार है
जानता था मैं समर्पण
विशुद्ध प्यार है
जरा मिले तो पूछना
कभी सीताजी से
कि उनकी सेवा में कोई
कमी छोड़ी हो मैंने !

हाँ मानता  हूँ मैं
थोड़ा बहका जरूर था
शायद थोड़ा घमंड और गुरुर था
शक्ति के मद  में अँधा और मगरूर था
पर जानता था मैं भी
जादू बहुत सारे
कर देता जो चाहता
सम्मोहन के इशारे
पर ऐसा इंद्रजाल
मैंने अपनाया नहीं
झूठ की राह चलकर
किसी को उलझाया नहीं
मैं "राक्षस " हूँ क्योंकि
मैं रक्षक बना
न भोगी,विलासी इस भक्षक बना
शिव भक्ति में रचा
शिव तांडव मैंने
सीखी है सूर्य से
ज्योतिष विद्या मैंने
मेरे ध्वज पर सरस्वती का वास है
राजनीती के गुण मेरे पास है
मुझे मोक्ष दिया था स्वयं प्रभु राम ने
सोचो मुकद्दर मेरा कुछ तो ख़ास है
मरते-मरते लक्ष्मण को दिया ज्ञान मैंने
याने प्रभुराम को भी मुझपर विश्वास है !

पर इस दुनिया से
है मुझको शिकायत बहुत
हर दशहरे दहन मेरा करवाते हो
मैं तो राम के नाम से
मोक्ष पा गया
तुम हर साल कहाँ से
मुझे जीवित कर लाते हो
कहीं ऐसा तो नहीं कि
तुम सभी के अंदर
एक बुरा रावण पल रहा है
जिसके फ़्रस्ट्रेशन में
तुम मुझे जलाते हो
दोस्त ! सोचना कभी
मैं इतना बुरा भी नहीं था
जितना बुरा तुम मुझे बताते हो !
चलो अपने जीवन का आरम्भ करो नया
मेरा क्या है,
मैं तो रावण हूँ....
मुझे समझा ही नहीं गया !!!
मैं तो रावण हूँ....
मुझे समझा ही नहीं गया !!!






गुरुवार, 18 मई 2017

रविवार, 7 मई 2017

इक्क कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है!!!

इक्क कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत
गुम है, गुम है, गुम है
गुम है, गुम है, गुम है

सूरत उसकी परियों जैसी ,
सीरत से वो मरियम लगती
हँसती है तो फूल झड़े है
चलती है तो ग़ज़ल है लगती
लम्बी-लम्बी साँसों जैसी
उम्र लगे है, आग के जैसी
पर नैनों की भाषा समझे
कहती है 'हम' "तुम" है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

जाने कितने जनम है बीते
उसको देखे , उसको जीते
पर लगता है कल ही थी वो
कभी लगे है , आज अभी थी
ऐसा लागे मेरे बगल में
अभी यहीं थी , कहीं नहीं है
जादूगरनी छल है करती
सोच मेरी हैरान बहुत है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

मेरी नजरें बाट है जोहे
क्यों नहीं मिलती है तू मोहे
हर आते-जाते में तुझको
ढूँढ रहा हूँ ,याद संजोये
तेरे चेहरे की रंगत को
तेरी हँसी,तेरी संगत को
मेरी अखियाँ ढूँढे तुझको
ये जो सारा हुज़ूम है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

जब उतरे धूप बाजारों में
महके लोबान गलियारों में
जब दिनभर का ये थका बदन
बैठे जाकर अँधियारों में
तब आती है यादें तेरी
भरने दर्द दरारों में
तब लगता है तनहाई में
तू खुशबू सी महकेंगी अभी
तेरी आवाज़ की आस में  दिल
गुमसुम है , गुमसुम है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

हर पल मुझको ये लगता है
हर दिन मुझको ये लगता है
इन भीड़ भरी सड़कों से वो
या फिर किसी झुरमुट से वो
देंगी इक आवाज मुझे
और मैं उसको पहचानूँगा
फिर वो मुझको पहचानेंगी
लेकिन सच तो ये है कि यहाँ
आवाज़ कोई भी आयी नहीं
और नज़रें भी टकरायी नहीं
मेरी बच्चों जैसी ये सोच भी
कितनी मासूम है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

जाने क्यूँ ऐसा लगता है
फिर मन में शक सा उठता है
इस भीड़-भड़क्के के बीच
तेरा साया संग चलता है
पर है कहाँ वो सोनपरी
ये मन मेरा छलता है।
गुम गया उसके चेहरे में
उसमें मन रमता है।
उसके गम में घुल गया ऐसे
जैसे मोम पिघलता है।
उसकी यादों की किलकारी
सितम है ,सितम है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....

प्राणप्रिये तुम्हे मेरी कसम है
उस पगली को उसकी कसम है
उस प्यारी को  सबकी कसम है
उस कुड़ी को रब की कसम है
जो तू मुझको पढ़ रही होंगी
जो तू मुझको सुन रही होंगी
इक बार आकर मिल जा मुझसे
मेरी वफ़ा का दाग मिटा दे
नहीं तो मुझसे जिया न जाए 
गीत भी अब कोई लिखा न जाए
मेरे गीतों की , साँसों की
तू ही तो तड़पन है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
सीधी-सादी मुरादों जैसी
निर्मल सी,फरियादों जैसी
साद,मुरादी,सोहणी फब्बत
गुम है , गुम है .....
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....


मूल रचना : श्री शिव कुमार बटालवी (पंजाबी)
हिंदी कृति : अमित अरुण साहू ,वर्धा ७ मई २०१७ शाम  ४.५१ (हिंदी)