बुधवार, 30 मई 2012

कुणीतरी होता...(a marathi poem by amit sir)

:कुणीतरी होता: रचनाकार:अमित सर:

कुणीतरी होता ,माझा मन वाचणारा!!!
माझ्या बरोबर माझ्या दुखाःत चालणारा!!!

जेव्हां मी काहीच नव्हतो
तेव्हां ती होती
मी जसा होतो तसा
मला स्वीकारणारी
माझ्यासाठी स्वतः चा
अस्तित्व हरविणारी
खूप प्रेम करणारी
माझे दुखः हरणारी
पण हरवली कुठे ती?हृदयावर पडला गारा
कुणीतरी होता ,माझा मन वाचणारा!!!

जेव्हां पैशे होते
सर्वांनी साथ दिला
जे मित्र नव्हते
त्यांनीही हात दिला
पण गरिबी आली
तेव्हा,फक्त ती होती
माझ्या पाठीशी खंबीरपणे
तीच  उभी होती
पण आज ती नाही जवळ , अन मी बिचारा
कुणीतरी होता ,माझा मन वाचणारा!!!

जेव्हां एकटा होतो
तीच  विचारायची
माझ्या अशांत मनाला
तीच शांत करायची
दुखः झळकले नाही
कधी माझ्या चेहऱ्यावर
पण उमटली निशाणे
त्यांची,तिच्या हृदयावर
पण समोर नाही ती आज;दुर्दैवच सारा
कुणीतरी होता ,माझा मन वाचणारा!!!

तिला पाहून कसा
हृदय शांत वाटायचा
काम कुठलाही असो
मन पूर्ण लागायचा
आता ती नाही,तर!
जगण कठीण वाटते
आनंदाची क्षणे ही
कसी क्षिण भासते
पण गेला कुठे आनंदाची क्षणे लिहिणारा
कुणीतरी होता ,माझा मन वाचणारा!!!
माझ्या बरोबर माझ्या दुखाःत चालणारा!!!



आठवण ..... (a marathi poem by amit sir)

:आठवण: रचनाकार: अमित सर:

मला येते फ़क्त  ती ,तुझीच आठवण !!!

तुला सांगू कसं मी 
तू आठवते क्षणी-क्षणी 
जीव घाबरतो असा
जसं मासा विना पाणी 
माझ्या जीवनात ये 
लिहू नवीन कहाणी 
तुझ्याविन तडफडते 
माझी सरस गाणी 
तू येशील जेव्हां,तोच क्षण माझा सण
मला येते ग फक्त, तुझीच आठवण !!!

दिवसाचं काय निघूनच जाते 
रात्र मात्र खूप अवघड ठरते 
रात्र भर तूच - तू 
माझ्या स्वप्नात असते 
उघड्या डोळ्यांनीही तू 
कोपऱ्या-कोपऱ्यात दिसते 
माझ्या हॉस्टलची मुलं
सतत माझ्यावर हसते
कसं उघडून दाखवू तुला माझा मन 
मला येते ग फक्त, तुझीच आठवण !!!

तू हसते खूप छान
मला पाहून-पाहून 
येते तीच आठवण 
सतत राहून-राहून 
पण तुझे पाऊल कधी 
पुढे पडणार नाही 
आणि मन माझा कधी 
संभळणार  नाही  
एकामेकाशी बोलू ,केव्हां येईल तो क्षण 
मला येते ग फक्त, तुझीच आठवण !!!

तुझी आई अर्काट
तुझे बाबा भयानक 
बहिण मारते भांजी
तुझा भाऊ नालायक 
या रानात कशी ,तू 
फुलासारखी उजळली  
आणि, कश्याला माझ्या 
या मनात  तडफडली
देव जाणे आता कसा चालणार हा जीवन 
मला येते ग फक्त, तुझीच आठवण !!!
खंर येते फक्त तो तुझीच आठवण!!!




मंगलवार, 29 मई 2012

आम आदमी .....

:आम आदमी : रचनाकार : अमित सर:

मैं भारत का आम आदमी !!!
सड़कों पर पिटता हूँ
दंगों में कटता हूँ
जेलें भी भरता हूँ
घुट-घुट के जीता हूँ
तिल-तिल के मरता हूँ
उम्र कम करता हूँ
खुद से ही डरता हूँ
खुद ही से लड़ता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

हादसे जब होते है
उनमे मैं मरता हूँ
टूटने पर 50  हजार
मरने पर एक लाख
सस्ते में बिकता हूँ
रस्ते पर दिखता हूँ
मैं बस आँकड़ा हूँ
रिपोर्टों में जड़ा हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

मेहनत मैं करता हूँ
टैक्स भी भरता हूँ
सुब्ह-शाम मरता हूँ
जीता हूँ -डरता हूँ
पुलिस के डंडों से
गुंडों के फँदों से
लूच्चे-लफंगों से
सफेदपोश नंगों से
मैं भारत का आम आदमी !!!

संसद में दाल सस्ती है
नेताओं में मस्ती है
इनको न बोलो कुछ
ये बड़ी हस्ती है
कानून बनाते है
हमको डर दिखाते है
कितना सताते है
फिर भी खामोश हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

महँगाई सहता हूँ
खामोश रहता हूँ
नेताओ के नाटक पर
कुछ भी न कहता हूँ
सुबह - शाम खटता हूँ
अपनों में बटता हूँ
दो जून रोटी की
जुगत में रहता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

जाति में बँटा हूँ
अपनों से कटा हूँ
मैं केवल वोट हूँ
पाँच सौ में बिका हूँ
टी.वी. पर देखता हूँ
सारा देश "मेट्रो" में
पर झाँको गावों में
साईकिल पर चलता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

पसीना बहाता हूँ
खुद को गँवाता हूँ
बच्चों की खातिर मैं
खुद भी बिक जाता हूँ
पानी से पेट भरके भी
हँसता हुआ आता हूँ
चोरी की ही सही
दो रोटी लाता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

मैंने सूखा झेला है
बाढ़ को धकेला है
भूकंप से उभरा हूँ
सुनामी से लड़ा हूँ
फिर भी मैं मरा हूँ
नेताओं के चोचलों से
झूठे ढकोसलों से
कितना ठगा हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

इनकी हवाई यात्राएँ
लाखों की होती है
करोड़ों के बंगले है
"खादी" की धोती है
फिर भी इनको चुनता हूँ
झूठे सपने बुनता हूँ
लोकतंत्र है भाई !
सम्मान करता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

भारी-भारी शब्द है
संसद की गरिमा !
सांसदों का अधिकार !
साला!सब छलावा है
नोटों का बुलावा है
मंत्री से संत्री तक
सब के सब बिकाऊ है
मैं भी घूस देता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

जेलों में सड़ता हूँ
सालों -साल लड़ता हूँ
तारीख पर तारीख
अदालत की सीढ़ी चढ़ता हूँ
कभी-कभी अड़ता हूँ
तो टूट जाता हूँ
जज से वकील तक
पैसा खिलाता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

साला ! सब धंदा है
मंदिर दुकान है
बिकाऊ भगवान है
उपदेश बिकते है
झूठी ख़बरें लिखते है
ये अख़बार और चैनल
"चमचे" से दिखते है
मैं भी देखता हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!

साली जिंदगी झंड है
फिर भी घमंड है
भारत महान है
लोकतंत्र जान है
नाटक है सब का सब
पार्टी एक व्यापार है
नेता दुकानदार  है
फिर भी मैं चुप हूँ
मैं भारत का आम आदमी !!!
अंजान और गुमनाम आदमी
मैं भारत का आम आदमी !!!

















रविवार, 27 मई 2012

कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली!!!(Marathi Poem By Amit Sir)

:कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली:रचनाकार: अमित सर:

तू कशी माझ्या हृदयाशी लागली
तू का ग मला इतकी आवडली !!!

काही सूचतच नाही
काही समजतच नाही
तुझ्याशी काय  बोलू ???
मनाचे भेद खोलू!!!
तुझी आठवण येते
अगदी मनापासून येते
पण तू भेटत नाही
म्हणून दुखच देते  
कशी ग तू वाटते उन्हात सावली
कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली!!!

तू छान आहे दिसायला
आवाज गोळ-गोळ
पण आवडते मला फक्त
तुझ्या मनातली खोळ
खर सांगू तर आपलं
मनाचं नातं आहे
अडवतो जीवाला पण
तुझ्याच वाटी जात आहे
तू वाटते मला मैत्रीण - माउली
कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली!!!

तुझ्या डोळ्यातलं पाणी
खूप वेदना देतो
तू झोप ! मी तुझ्या
दुखाकडे झेप घेतो
तुला कळेना !!!
माझा प्रेम वेगळा
सर्वस्व आपला
तुझ्या परी देतो
तुझ्यापेक्षा वाटतंच नाही कोणी चांगली
कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली!!!

माझ्या भावना अश्या
मित्र थट्टा उडवतात
मला तुझ्याशी ते
बोलायला सांगतात
पण प्रेम फक्त का
बोलण्यानेच होतो???
तुला कळत असेल ना
जेव्हां मी रडतो  !!
ही कशी वेदना मी जीवाला लावली
कशी ग तू माझ्या हृदयाशी लागली!!!

काकस्पर्श .....

:काकस्पर्श: रचनाकार: अमित सर:

जो शरीर से परे हो वो प्यार माँगता हूँ
तुम्हारी अंतरात्मा का द्वार माँगता हूँ


आँखों से भी तो तुम छू सकती हो मुझको

"गीता" न सही गीता का सार माँगता हूँ

दुनिया के बन्धनों ने रोक रखा है मुझको

थोड़े-से दर्द सह लो
, इंतजार माँगता हूँ

कब तक खामोश-सा तुझको चाहता रहूँगा

तेरा हाथ मेरे हाथों में यार माँगता हूँ


तेरा मासूम चेहरा और शांत भावनाएँ

तू बन जा उर्वशी
,मैं मल्हार माँगता हूँ

ये दुनिया बहुत उँगलियाँ उठाती रहेंगी

तुझसे थोडा संयमित व्यवहार माँगता हूँ


दर्द
,तड़प,बेबसी कहीं तोड़ ना डाले अब
तू जीत जा जिन्दगी
, मैं हार माँगता हूँ

आती है अगर मौत तो मोहब्बत से आये

विरह
- वेदना का प्रहार माँगता हूँ

मेरी गज़ल का लहजा क्यों तल्ख़ हो चला है

तू सामने आ जा
,मैं विचार माँगता हूँ

माँ और ॐ में तो दुनिया समाई है

तू दे
, मैं नया कोई उच्चार माँगता हूँ

शनिवार, 26 मई 2012

विचार......

:विचार:रचनाकार:अमित सर:
ये पागल विचार ....
कितने तेज होते है ...

तूफ़ान से लगते है ...

बिजली से कौंधते है...

बस जागते रहते है ....

न आँखें मूंदते है...

अद्भुत होते है....

चमत्कृत करते है...

कभी नहीं डरते है...

सुबह
,शाम,रात हो...
गरजते है
,बरसते है...
विचारों के आने से...

आत्ममंथन होता है ...

हलाहल निकलता है...

अमृत छलकता है...

विचार एक घोडा है...

कितना तेज दौड़ा है...

समय से भी आगे है...

विचार कैसा भागे है...

इसको जान लेने से...

कमान तान लेने से...

तीर सही लगता है ...

विचार सुलगता है...

इसमें आग होती है...

आग की तपिश में...

जब विचार पकता है...

तो दिल को लगता है...

ये विचार पानी है...

आर-पार दिखता है...

आजकल ये बिकता है...

संतो ने बेचा है...

भक्तो ने ख़रीदा है...

दुकानदारी चलती है...

पर बात यही खलती है...

क्या हम इतने विवेकहीन है ...

जो विचार खरीदते है...

या अपने पापों का...

उपचार खरीदते है...

सोचने की जरूरत है...

झाकियें मन
में...
वहाँ विचार खूबसूरत है ...

विचार कस्तूरी है...

मन में गहरे बैठा है...

खुशबू में पागल हम...

भटकते बाहर है...

जबकि
,वो अन्दर है...
विचार समन्दर है...

वो सीप का मोती है ....

दीये की ज्योति है ...

विचार पूर्णाहूति है !!!विचार पूर्णाहूति है !!!

शुक्रवार, 25 मई 2012

पत्थरों की दरारों से उगते हुए रिश्ते.....

:पत्थरों की दरारों से उगते हुए रिश्ते: रचनाकार:अमित सर:

कभी तुमने देखा है ....
पत्थरों की दरारों से ...
उगते हुए फूलों को !!!
सोचा है कैसे उगता है ...
पत्थरों के बीच से ....
दिल भी खालिस पत्थर है ....
दरारें है रास्ता ....
रास्तों के खुलने से ...
उसमे बूँदें मिलने से...
एकसाथ घुलने -से ...
सुब्ह-शाम धुलने से...
भवरों के मचलने से...
चिड़ियों के चहकने से...
मंजर बदल जाते है ....
कलियाँ चटक जाती है ....
फूल खिल जाते है ...
चलिए हम बताते है -
ये कैसे होता है ???
कैसे दिल पिघलता है...
कैसे बात बनती है ...
कैसे घर महकता है ...
ये दिल जो है ना...
पत्थर -सा सख्त है ...
पानी से तडकता है...
धूप से चटकता है ...
आसूँ इसका पानी है ...
रिश्ते इसकी धूप है ...
जस्ब कर लो पानी को ...
गर्म कर लो रिश्तों को ...
फिर पत्थर पिघलेंगा...
याने दिल भी संभलेंगा!!!
रास्तों के खुलने से ...
दिल-के-दिल में मिलने से ...
हरियाली आएँगी...
काली घटा छायेंगी...
सारे पाप धो देंगी ...
बूंदे ये बारिश की ...
आखों से नीर निकलेंगा ....
मन का मैल धो देंगा ...
तब कलियाँ  खिलेंगी ....
रिश्तों के फूलों की ...
पत्थरों की दरारों -से ...
मैंने बात कह दी है ...
सारी ये इशारों से ...
कभी तुमने देखा है ...
पत्थरों की दरारों में ...
उगते हुए फूलों को !!!!





गुरुवार, 24 मई 2012

दो-चार साल ही सही,पर तुमसे बड़े है .....

  
:तुमसे बड़े है : रचनाकार:अमित सर: 
मेरे अशार यहाँ - वहाँ बिखरे पड़े है
बस तुम्हारे आने की जिद पे अड़े है

तुम आ जाओ तो पिघलकर कोई शायरी बने

शब्द सारे तुम्हारे इंतजार में खड़े है

जब कहता हूँ तुमपर , ये खूबसूरत लगते है

जैसे सोने की अंगूठी में नगीने - से जड़े है

मुझसे रूठकर बैठी है कायनात सारी

चाँद , तारे, फूल सब मुझसे लड़े है

क्यों इस कदर डांट देती हो मुझको

दो-चार साल ही सही,पर तुमसे बड़े है 




प्यार के दुःख है ,कितने प्यारे.....

:धरती, अम्बर, चाँद, सितारे:रचनाकार:अमित सर:

धरती, अम्बर, चाँद, सितारे
इक तू जीती , ये सब हारे
 
नदिया,झरने,परबत,जंगल
तेरे आगे , फीके सारे
 
आसूँ-मोती,आँखें-सीपी
सारी बातें ,तेरे सहारे
 
लड़ना-झगड़ना,रूठना-रोना
प्यार के दुःख है ,कितने प्यारे
 
जीना-मरना, पाना- खोना
प्यार दिखाए ,कैसे नज़ारे
 
बादल, बूंदें, बारिश, खुशियाँ
तेरे बिन ,गुमसुम है सारे
 
प्रेम-समर्पण, भक्ति-शक्ति
प्यार में तेरे ,कितने इशारे
 
गम-ख़ुशी, आसूँ-मुस्कान
सारे परिवर्तन तेरे सहारे

आँसूओं को मेरे गंगाजल बना दो.....

:आँसूओं को मेरे गंगाजल बना दो:रचनाकार:अमित सर:

आँसूओं को मेरे गंगाजल बना दो
जाओ तुम जिन्दगी को सफल बना दो
 
गम , दर्द , बेबसी और तन्हाई
छू लो शब्दों को और ग़ज़ल बना दो  
 
बस छूने भर की ही तो देर है 
बेमोल लकडियों को संदल बना दो
 
चढ़ गया है मन पर दुनियादारी का मैल
आजाओ जरा मन को निर्मल बना दो
 
झूठा ही सही , कह दो के प्यार है
मेरे लिए महान बस एक पल बना दो
 
किसे है तमन्ना आँखों में बसने की
कुछ देर रखों पलकों पर, काजल बना दो

मांग ना पाया ......

:मांग ना पाया: रचनाकार : अमित सर:

तेरे दर पर आकर भी  मै चौखट लांघ न पाया
सामने होकर भी  मै प्यार मांग न पाया
 
खुदकुशी करना सचमुच बडी मुश्किल शरारत है
तेरा मासूम चेहरा और मै खुद को टांग न पाया
 
तुझे तेरी मोहब्बत मिल जाए और खुश तू हो
चाहकर के भी तुझको मै खुदा से मांग न पाया

मेरी गज़लों से तेरी खुशबू आए ......

:मेरी गज़लों से तेरी खुशबू  आए: रचनाकार : अमित सर:

    
क्यूँ चाहता है दिल के बस तू आए
जब चले हवा , बस तेरी खुशबू आए

रुक जाये धड़कने तब भी चाहूँगा
न आएँ साँसें, बस तेरी आरजू आए

तुम छू लो तो जी उठेंगे किताबों के वरक
चाहता हूँ मेरी गजलों से तेरी खुशबू आए

सबसे अच्छी तेरी सोहबत .....

:सबसे अच्छी तेरी सोहबत: रचनाकार:अमित सर:

मिल गई जन्नत, तुझसे मोहब्बत
सबसे अच्छी, तेरी सोहबत
 
तेरी हँसी का - हल्का इशारा
धुल गए सब गम , खुल गई किस्मत
 
तेरे आसूँ बोझल - बोझल
तेरी खुशियाँ ,खुदा की नेमत
 
पलके झुकाना , पलके उठाना
प्यार भरी है, तेरी हरकत
 
याद तुझे करता हूँ हरपल
तू भी करना ,मिले जो फुर्सत
 
याद तुम्हारी धक् धक् धडके
प्रेमरोग ये, कैसी आदत
 
तेरे संग अब सबकुछ पाया
तेरे आगे ,फीकी जन्नत
 
तुझे जो देखा मिल गई तृप्ती
बची दिल में, कोई हसरत