रविवार, 8 दिसंबर 2019

"मानवाधिकार"

कभी सुना है आपने....
लड़की की इज्जत लूट गयी
ये "इज्जत" कैसे लूट ली जाती है
क्या इज्जत सिर्फ दो अंगों में समाती है
क्यों ऐसी घटनाओं के बाद
लड़की झुककर चलें
क्यों नाम और चेहरा छुपाना पड़े
क्यों माँ -बाप उसके शर्मिंदा हो
क्यों सालों साल न्याय का धंधा हो


इज्जत वो गवाते है जो
बलात्कार करते है
शर्म से सर तो उनका झुकना चाहिये
जो रेपिस्टों का केस स्वीकार करते है
वो न्याय व्यवस्था अपनी
करनी पे शर्मिंदा हो
जो तारीखों के फेर में
उलझती रहती है
"बेल" देती हैं अदालतें
और "बेटियाँ" सहती है
क्या मानवाधिकार सिर्फ
अपराधियों का होता है
जब जलती है बेटियाँ
तब क्या ये सोता है

न्यायलय को अपनी लाचारी पे
शर्म आनी चाहिये
समाज को दोगलेपन से
निज़ात पानी चाहिये
संसद से रेपिस्टों का
सफाया होना चाहिये
बलत्कारियों को सरेआम
धोना चाहिये
संविधान को ये दीमक बनकर
खा रहे हैं
कानून की धज्जियाँ उड़ा रहे है
और तब भी तुम्हे अपराधियों के
मानवाधिकार दिखते है
जो जल गयी उस बेटी के
चिथड़े नहीं दिखते है
अरे दोगले लोगों
सच का पक्ष लेना सीखो
कलम के सिपाही हो तो
सच ही लिक्खो

वर्ना किसी दिन बेटियों की
ये चीत्कारें
तुम्हारी चौखट तक आ जाएंगी
और ये जो पहना है
मानवाधिकार का मुखौटा तुमनें
उसे नोच-नोच कर खा जाएंगी
उसे नोच-नोच कर खा जाएंगी