मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

तमाशा

" तमाशा "

इम्तियाज़  अली  सर " तमाशा "  देखकर  मंत्रमुग्ध हो गया हूँ !!!
"तमाशा" हिंदी सिनेमा में "उत्कृष्टता की बेमिसाल कृति" है।
आपकी फिल्म को दिल से समझने की कोशिश की है !
ये कविता "तमाशा" की नजर है !!!
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 "तमाशा"

अगड़-बगड़ राहों से ...
डूबती निगाहों से ...
ठहरी-सी रहती थी जो,
छलकने लगी ...
झील बहने लगी !!!

बंधे-बंधे हम थे,
जीवन के धागों से ....
सीमाएँ तय थी,
बुझे थे इरादों से ....
एक दिन तम्मनाएँ
बहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

जिंदगी दायरा है
सिमाओं की परिभाषा है....
ये करो, ये मत करो
बस मर्यादाओं में जियो ....
वर्ना लोग क्या कहेंगे ???
एक दिन इन किनारों को
तोड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

सुबह से शाम तक ...
एक नीरस - सा सच ...
पैसों की जरूरत और
जरूरतों की दौड़ ...
नहीं मरना है ऐसे
सिसकने लगी ...
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

अभिनय पर अभिनय
बनावटों की दुनिया ....
हम, हम ना रहे
बस कहीं खो गये ....
सिर्फ किरदार-किरदार
किरदार है ....
एक दिन तोड़ पिंजरा
चहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

प्यार की तिलांजलि
धर्म के नाम पर ....
शौक का जनाज़ा
कर्म के नाम पर ....
जो चाहा वो कभी भी
कर ना सके ....
एक दिन खोले पंख
और उड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

इक खुशनुमा सा
झोंका पीछे रह गया ....
तेज़ चालों में नन्हा
कदम खो गया ....
वो लम्हा जब मैं
मैं था, तुम नहीं ....
अब तो सब है मुझमें
मैं , मैं नहीं ....
दौड़ी उल्टी और
बचपन पकड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

पहले होते थे गम के
ख़ुशी के आँसू ....
हर बात पे "तमाशा"
जिंदगी के आँसू  ....
अब तो दिल पर
बोझ इतना ....
के बहते भी नहीं
बहुत कुछ है कहने को
कहते भी नहीं ....
आज प्याले से शबनम
छलकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

भीड़ ही भीड़ है
भीड़ ही भीड़ है  ....
रेस है गोल सी
पर सिरा कुछ नहीं  ....
भागते जा रहे
दौड़ते जा रहे  ....
जीने के लिये???
जी तो पाये नहीं  ....
पर बंद होने से पहले
धड़कने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

हर कहानी एक सी
किरदार एक से ....
सारे मोड़ है वही
अंत भी एक से ....
मैं उलझ जाऊँगा
मैं भी खो जाऊँगा ???
नहीं-नहीं, नहीं अब नहीं ....
बस कहानी मैं अपनी
लिखूँगा खुद-ही ....
इस सोच की लौ
अब धधकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

" तमाशा "

इम्तियाज़  अली  सर " तमाशा "  देखकर  मंत्रमुग्ध हो गया हूँ !!!
"तमाशा" हिंदी सिनेमा में "उत्कृष्टता की बेमिसाल कृति" है।
आपकी फिल्म को दिल से समझने की कोशिश की है !
ये कविता "तमाशा" की नजर है !!!
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 "तमाशा"

अगड़-बगड़ राहों से ...
डूबती निगाहों से ...
ठहरी-सी रहती थी जो,
छलकने लगी ...
झील बहने लगी !!!

बंधे-बंधे हम थे,
जीवन के धागों से ....
सीमाएँ तय थी,
बुझे थे इरादों से ....
एक दिन तम्मनाएँ
बहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

जिंदगी दायरा है
सिमाओं की परिभाषा है....
ये करो, ये मत करो
बस मर्यादाओं में जियो ....
वर्ना लोग क्या कहेंगे ???
एक दिन इन किनारों को
तोड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

सुबह से शाम तक ...
एक नीरस - सा सच ...
पैसों की जरूरत और
जरूरतों की दौड़ ...
नहीं मरना है ऐसे
सिसकने लगी ...
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

अभिनय पर अभिनय
बनावटों की दुनिया ....
हम, हम ना रहे
बस कहीं खो गये ....
सिर्फ किरदार-किरदार
किरदार है ....
एक दिन तोड़ पिंजरा
चहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

प्यार की तिलांजलि
धर्म के नाम पर ....
शौक का जनाज़ा
कर्म के नाम पर ....
जो चाहा वो कभी भी
कर ना सके ....
एक दिन खोले पंख
और उड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

इक खुशनुमा सा
झोंका पीछे रह गया ....
तेज़ चालों में नन्हा
कदम खो गया ....
वो लम्हा जब मैं
मैं था, तुम नहीं ....
अब तो सब है मुझमें
मैं , मैं नहीं ....
दौड़ी उल्टी और
बचपन पकड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

पहले होते थे गम के
ख़ुशी के आँसू ....
हर बात पे "तमाशा"
जिंदगी के आँसू  ....
अब तो दिल पर
बोझ इतना ....
के बहते भी नहीं
बहुत कुछ है कहने को
कहते भी नहीं ....
आज प्याले से शबनम
छलकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

भीड़ ही भीड़ है
भीड़ ही भीड़ है  ....
रेस है गोल सी
पर सिरा कुछ नहीं  ....
भागते जा रहे
दौड़ते जा रहे  ....
जीने के लिये???
जी तो पाये नहीं  ....
पर बंद होने से पहले
धड़कने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

हर कहानी एक सी
किरदार एक से ....
सारे मोड़ है वही
अंत भी एक से ....
मैं उलझ जाऊँगा
मैं भी खो जाऊँगा ???
नहीं-नहीं, नहीं अब नहीं ....
बस कहानी मैं अपनी
लिखूँगा खुद-ही ....
इस सोच की लौ
अब धधकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

झील बहने लगी !!!

झील की फितरत में बहना नहीं है,वो शांत रहती है रुकी हुई,एक जगह ....
पर कभी-कभी उकता जाती है और बहने की जिद करने लगती है ....
सारे दायरों को तोड़कर -
गौर फरमाइए -

अगड़-बगड़ राहों से ...
डूबती निगाहों से ...
ठहरी-सी रहती थी जो,
छलकने लगी ...
झील बहने लगी !!!

बंधे-बंधे हम थे,
जीवन के धागों से ....
सीमाएँ तय थी,
बुझे थे इरादों से ....
एक दिन तम्मनाएँ
बहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

जिंदगी दायरा है
सिमाओं की परिभाषा है....
ये करो, ये मत करो
बस मर्यादाओं में जियो ....
वर्ना लोग क्या कहेंगे ???
एक दिन इन किनारों को
तोड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

सुबह से शाम तक ...
एक नीरस - सा सच ...
पैसों की जरूरत और
जरूरतों की दौड़ ...
नहीं मरना है ऐसे
सिसकने लगी ...
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

अभिनय पर अभिनय
बनावटों की दुनिया ....
हम, हम ना रहे
बस कहीं खो गये ....
सिर्फ किरदार-किरदार
किरदार है ....
एक दिन तोड़ पिंजरा
चहकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

प्यार की तिलांजलि
धर्म के नाम पर ....
शौक का जनाज़ा
कर्म के नाम पर ....
जो चाहा वो कभी भी
कर ना सके ....
एक दिन खोले पंख
और उड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

इक खुशनुमा सा
झोंका पीछे रह गया ....
तेज़ चालों में नन्हा
कदम खो गया ....
वो लम्हा जब मैं
मैं था, तुम नहीं ....
अब तो सब है मुझमें
मैं , मैं नहीं ....
दौड़ी उल्टी और
बचपन पकड़ने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

पहले होते थे गम के
ख़ुशी के आँसू ....
हर बात पे "तमाशा"
जिंदगी के आँसू  ....
अब तो दिल पर
बोझ इतना ....
के बहते भी नहीं
बहुत कुछ है कहने को
कहते भी नहीं ....
आज प्याले से शबनम
छलकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

भीड़ ही भीड़ है
भीड़ ही भीड़ है  ....
रेस है गोल सी
पर सिरा कुछ नहीं  ....
भागते जा रहे
दौड़ते जा रहे  ....
जीने के लिये???
जी तो पाये नहीं  ....
पर बंद होने से पहले
धड़कने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!

हर कहानी एक सी
किरदार एक से ....
सारे मोड़ है वही
अंत भी एक से ....
मैं उलझ जाऊँगा
मैं भी खो जाऊँगा ???
नहीं-नहीं, नहीं अब नहीं ....
बस कहानी मैं अपनी
लिखूँगा खुद-ही ....
इस सोच की लौ
अब धधकने लगी ....
झील बहने लगी !!!
झील बहने लगी !!!