मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

बस कोई रात में सोने न पाए!

 मुझे रात से शिकायत है
तुमसे भी ज्यादा....
छीन लेती है मुझसे तुम्हें
कर देती है मुझे आधा....
मुझे नींद से गिला है
आती ही क्यों है...
तुम्हें मुझसे छीन जाती ही
क्यों है...
चलो... ऐसा करो तुम
मुझे ख़्वाबों में मिलना...
पर प्लीज वहाँ चुप न रहना
जरा खिलना...
खूब बतियाना रात भर
आठ घंटे....
सोते - सोते भी रहना
मुझे में खोते...
इतना चाहती हूँ...
डूब जाना मुझ-ही-में...
हटे जब मोबाईल की
स्क्रीन से नज़रे...
मुझसे भी नज़रे
मिलाया करो जी...
दिन भर तो दूर ही
रहते हो मुझसे
रात को मेरी बाहों में
आया करो जी...
पर रात के लम्हें
बचे ही है कितने?
वो बिस्तर,वो तुम और
जगजीत की गज़ले?
पलक-झपकते ही
होती है सुबह...
फिर वहीं काम
वहीं सिलसिले है...
मुझे रात से शिकायत है इतनी
रात तुम थोड़ी
लंबी क्यों नहीं हो...
क्या रुक नहीं सकता...
ये चाँद ये अंधेरा...
क्या हो नहीं सकता ये रिश्ता
और गहरा...
आसमां की स्याह चादर
अनंत है कितनी...
पर रात छोटी है
रुमाल जितनी....
बस...
तुम मेरी रूह में उतर जाओ
दिन है या रात सब भूल जाओ
एक ऐसी शब से
नवाज़ों मुझे तुम
जिसकी कोई सुबह ही नहीं हो!
मुझमे कुछ ऐसे समा जाओ
अब तुम,लगे बस मैं हूँ...
तुम कहीं नहीं हो!
फिर मेरे अंदर से आवाज़ देना
न तुम खुद सोना
न मुझे सोने देना!
बस रात की मस्ती में
कहीं खो - से जाना
और...
कहना 'रात' से,'दिन'
हो न जाना...
बस इतनी शिकायत मुझे रात से है
तुम्हें मुझसे छीनकर...
'दिन' देती है...
मेरे हिस्से के लम्हें
गिन - गिन देती है!
मुझे अब ऐसी रात ला दो
जिसकी सुबह ही होने न पाए....
मुझे रात से मुहब्बत बहुत है.....
बस कोई रात में सोने न पाए!