सोमवार, 4 सितंबर 2017

कुछ दिनों से मन में बड़ी उलझन थी की इस मुद्दे पर कुछ लिखूं या न लिखूं . पर आज जब कानून मंत्री अश्विनी कुमार का ये तर्क सुना कि " बच्चे टी . वी . और इन्टरनेट के कारण जल्दी मैच्योर हो रहे है, इसलिए सहमति पूर्ण संबंधों की उम्र घटाकर सोलह साल की जा रही है। " तो मन बड़ा विचलित हुआ। याने, इस तर्क पर चला जाये तो आज से 30-40 साल बाद यदि बच्चे 14 साल में हमारे नेताओं को मैच्योर लगने लगेंगे तो शायद ये उम्र घटाकर 14 कर देंगे ! क्या सचमुच हमारे नेता "बचपन और युवावस्था " से न्याय कर रहे है , या अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पल्ला झाड रहे है , ताकि ज्यादातर 'गुनाहों' को सहमतिपूर्ण सम्बन्धों का जामा पहनाकर 'बलात्कार' जैसे सामाजिक कुकृत्य के आकड़ों को ऑन पेपर कम दर्शाया जा सके। आज मैं जिन बच्चों को पढाता हूँ , उनमे से ज्यादातर इसी आयुवर्ग के है, और जब उनकी ओर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या सचमुच ये बच्चे इतने मैच्योर हो गए है ??? सवाल कई है और फेसबुक की अपडेट फ्रीक्वेंसी को देखते हुए सभी के पास पढने का समय कम। पर इस मुद्दे पर सोचिये और अपनी राय रखिये !

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