लगभग हमेशा के लिए चली गई
लड़की की
अम्मा से जब पूछा....
क्या Time Machine में बैठकर
गुज़रे लम्हों की सैर करोंगी?
चाहोगी रोकना अपनी बच्ची को
दिल की सच्ची को?
हँसते हुए बोली अम्मा...
डरती थोड़े ही हूँ...
जाने देती!!
लड़ने लड़ाई सच की...
मज़लूँमों के हक़ की!
आवाज़ उठाने...
हक़ बचाने,जाने देती...
हँसते - हँसते...
कमर
कसते - कसते !
पर जैसे ही..
पलटा रिपोर्टर...
छलक गए आँसू...
जो देख नहीं पाया कोई...
माँ छलावा कर गई!
अपनी हँसी से...
बेटी के घाव भर गई!
मैं हँसती हूँ...
तुम भी हँसना...
फूलों की पंखुड़ियों-सी...
खुशियाँ बिखेरना...
"गुलफिशा"...
ना डरना...
बेटी संघर्ष करना 👊
सोमवार, 14 अप्रैल 2025
🌼गुलफिशा💐
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