सावन बीत जाता है,मेहंदी छूट जाती है
महबूबा जवानों की अक्सर रूठ जाती है
मोहब्बत सरहदों पर कुछ इस क़दर निभाते है
गाँव आते - आते चूड़ियाँ भी टूट जाती है
जजों को सांसदी,क्रिकेटरों को भारत रत्न
मुफलिसी यहाँ कुनबा सारा लूट जाती है
सिर्फ अच्छे जुमलों से पेट भरता नहीं साहब
चला जाए अगर बच्चा तो किस्मत फूट जाती है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें