शनिवार, 29 मई 2021

आँकडे

हम केवल "आँकड़ें" है...
कभी जनसंख्या के
कभी धर्म के
कभी चुनाव के
कभी "मौत" के!
हम "भीड़" है बस
उनकी नज़र में
जिन्हें हम रहनुमा
समझते है...
और... लड़ते है
अपनों से उनके लिए
जो हमें बस "आँकड़ा"
समझते है!
वो हँसते होंगे
हमारी बेवकूफी पर
जब बतियाते होंगे
आपस में!
ये हमें आँकड़ा बनाते है
फिर आँकड़ो से ही
हमें मूर्ख भी बनाते है!
जब पीठ थपथपानी हो
खुद की,
तब आँकड़ा दिखाते है
जब नाकामी छुपानी हो
तो आँकडे मिटाते है!
कुछ आँकडे ऐसे ही नादान
तैरकर ऊपर आ गए...
नदियों में तैरते आँकडे
दफ़न सच दिखा गए!
आँकडे तैरकर ऊपर आ गए!

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