*"लाश की हत्या"*
मैं भारत माँ की बेटी थी
मैं जीते जी मर जाती थी
जब खेतो से घर जाती थी
मैं रस्तों में डर जाती थी
वो रौबदार ऊँचे कुलीन
बातें उनकी कितनी मलिन
बस नज़रे नीची कर जाती थी
सचमुच मैं डर जाती थी
पर रीढ़ की हड्डी सीधी थी
मेरी इज्जत मेरी परिधी थी
मैं गुस्से से भर जाती थी
मैं ख़ुद से ही डर जाती थी
एक दिन जो डर था सच ही हुआ
मुझे खेतों में ही दबोच लिया
किया इज़्ज़त को तार - तार
शरीर पे ढाया अत्याचार
तोड़ा जबड़ा काटी जुबान
हर तरह से कर दिया अपमान
टूटी रीढ़ मैं तनी रही
अपनी ठसक में बनी रही
लड़ी मौत से बार - बार
बस सुन ले कोई मेरी पुकार
एसपी,कलेक्टर,थानेदार
कोई योगी या चौकीदार
पर कोई न आया आगे तब
टूटने लगे साँसों के तार
फिर भी नहीं मानी मैंने हार
मुझे पता नहीं था रेप शब्द
पूछा पुलिस नें रही निःशब्द
बोले मजिस्ट्रेट कुछ गलत हुआ
मैंने हाँ में जवाब दिया
कुछ आस जगी मिलेगा इंसाफ
होंगे नहीं अब दोषी माफ़
इस आस पर दुनिया से ली विदा
अब तो गंदगी होंगी साफ
मैं चढ़ गयी बली हवस की तो क्या
न्याय के रक्षक लड़ लेंगे
मेरी बंद होती आँखों की
आख़िरी हसरत पढ़ लेंगे
भारत ये लोकतंत्र महान
न्यायतंत्र इसकी पहचान
मज़लूम के हक़ का संविधान
इनके भरोसे दे दी जान !
पर देकर के जान क्या मिला
थमा ही नहीं ये सिलसिला
कहा पेनेट्रेशन हुआ नहीं
सीमेन ट्रेस भी मिला नहीं
लड़की झूठी थी शायद
रेप तो इसका हुआ नहीं
मैं जीते - जी न हुई शर्मसार
मरने पर लेकिन जो हुए प्रहार
हतप्रभ हूँ ये देखके मैं
आया कैसे
लाश की हत्या का विचार !
इतिहास रखेंगा याद सदा
लाश भी एक चिंगारी है
तुम लाश की हत्या पर चुप हो
अगली बारी तुम्हारी है
अगली बारी तुम्हारी है !!!
रविवार, 16 मई 2021
*"लाश की हत्या"*
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