रविवार, 14 सितंबर 2014

सम्पूर्णता की परम कहानी
जगत के कण-कण में तुम बसे हो
ब्रह्माण्ड-नायक ,त्रिकालदर्शी
हर इक कसौटी पर तुम कसे हो....

किताबें बांची न जाने कितनी
मिली न कोई गीता के जैसी
पढ़े है जीवन चरित्र कितने
बस एक तुम ही मुझको जंचे हो.... 


ब्रह्माण्ड-नायक ,त्रिकालदर्शी
जगत के कण-कण में तुम बसे हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें