रविवार, 14 सितंबर 2014

और गहरा हो रहा विश्वास मेरा ……

प्रेम की नयी परिभाषाएँ गढ़ रहा हूँ
आँखों से अब मैं भी चेहरे पढ़ रहा हूँ
हर लम्हा अब हो रहा है खास मेरा
और गहरा हो रहा विश्वास मेरा ……

कोई तो है डोर , जो दिखती नहीं है
यूँ -ही तेरे गम में पलकें भीगती नहीं है
शुद्धता को छू रहा , हर अहसास मेरा
और गहरा हो रहा विश्वास मेरा ……

जो क्षणिक सुख की चाह में न जलें
जो साँसों में गूँथे और पलकों पर पलें
कोई छू रहा है सपनों का आकाश मेरा
और गहरा हो रहा विश्वास मेरा ……

राम-सीता , कृष्ण-राधा प्रतिमान बने अब
शालिनता ईश्क़ की पहचान बने अब
हो वासना-मुक्त हर मोहपाश मेरा
और गहरा हो रहा विश्वास मेरा ……

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