रविवार, 14 सितंबर 2014

जिंदगी तुम्हारी नज़र कर रहा हूँ
खुद पे ये कैसा कहर कर रहा हूँ

तुम्हें चाहता हूँ कितना टूटकर मैं
ग़ज़लों से अपनी खबर कर रहा हूँ

होकर के दूर तुमसे ,तुम्हे चाहूँगा मैं
तुम्हारी भावनाओं की कदर कर रहा हूँ

तुम तो रुक गयी,राहों में प्यार की
पर मैं अब भी ,सफ़र कर रहा हूँ

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