"माँ"
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
तुम्ही ने लाड -प्यार से दुलारा
मेरी अनगढ़ हस्ती को है निखारा
पौधों को जो दे-दे जीवन , वो धूप हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
हर घर में ईश्वर कहाँ से झाँक पाता
आ-कमरों में किस-किस बन्दे को ताक पाता
मेरे लिये तो ईश्वर स्वरुप हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
तुम्हारे दिल के दर्द की क्या थाह जानूँ
तुम्हारे मन से निकली मैं क्या आह जानूँ
मैं 'प्रतिलिपि' माँ 'मूलभूत' हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
समर्पण की हदों की परिसीमाऐं तुममें
प्रेमभाव की सारी कल्पनाऐं तुममें
बच्चों का बदल दे जो जीवन , वो रुत हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
तुम्ही ने लाड -प्यार से दुलारा
मेरी अनगढ़ हस्ती को है निखारा
पौधों को जो दे-दे जीवन , वो धूप हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
हर घर में ईश्वर कहाँ से झाँक पाता
आ-कमरों में किस-किस बन्दे को ताक पाता
मेरे लिये तो ईश्वर स्वरुप हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
तुम्हारे दिल के दर्द की क्या थाह जानूँ
तुम्हारे मन से निकली मैं क्या आह जानूँ
मैं 'प्रतिलिपि' माँ 'मूलभूत' हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
समर्पण की हदों की परिसीमाऐं तुममें
प्रेमभाव की सारी कल्पनाऐं तुममें
बच्चों का बदल दे जो जीवन , वो रुत हो तुम
मेरी परीकथाओं का साकार रूप हो तुम.……
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