देखा है राह में पत्थर तोड़ती उस औरत को ......
क्या चमक है चेहरे पर .....
भरी दुपहरी में
पसीने की ढलकती बूँदें ......
मानो फूल से ओस झर रही हो ......
कहता है उसका पति -
क्यों इतना काम कर रही हो ?
कहती है -
थकन से चूर ये बदन ......
ये उठती सिहरन ......
ये मीठा दर्द ......
सुकून का अहसास कराते है ......
मेहनत करने से कोई मरता है क्या !!
मैंने तो नहीं सुना ......
फिर डरते क्यों हो ???
उठो , जागो , चलो मेहनत करो ......
ये मेहनत सुकून का अहसास कराएेंगी ......
हर मुश्किल का ये जवाब है ......
यही सफलता दिलाएंगी ......
..
..
..
..
..
..
..
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सचमुच सड़क किनारे भी
फिलॉसॉफर बसते है !!!!
हम यूँ ही इन मेहनतकशों
पर हँसते है !!!
सचमुच सड़क किनारे
फिलॉसॉफर बसते है !!!!
क्या चमक है चेहरे पर .....
भरी दुपहरी में
पसीने की ढलकती बूँदें ......
मानो फूल से ओस झर रही हो ......
कहता है उसका पति -
क्यों इतना काम कर रही हो ?
कहती है -
थकन से चूर ये बदन ......
ये उठती सिहरन ......
ये मीठा दर्द ......
सुकून का अहसास कराते है ......
मेहनत करने से कोई मरता है क्या !!
मैंने तो नहीं सुना ......
फिर डरते क्यों हो ???
उठो , जागो , चलो मेहनत करो ......
ये मेहनत सुकून का अहसास कराएेंगी ......
हर मुश्किल का ये जवाब है ......
यही सफलता दिलाएंगी ......
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सचमुच सड़क किनारे भी
फिलॉसॉफर बसते है !!!!
हम यूँ ही इन मेहनतकशों
पर हँसते है !!!
सचमुच सड़क किनारे
फिलॉसॉफर बसते है !!!!