शुक्रवार, 1 जून 2012

अपने मन की खुशबू दे-दो,अपने तन का चन्दन दो...

:खजुराहो:रचनाकार: अमित सर:


प्रेम-पर्व की प्रथम रात्रि का तुम मुझको अभिनन्दन दो
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन  दो

प्यार भरी बारिश में डूबूँ

मुझको सारा यौवन दो

विरह वेदना में मैं तपा हूँ

मुझको प्यार का सावन दो

छूकर गुजरे मन को मेरे

प्यार तुम ऐसा पावन दो

अपने मन की खुशबू दे-दो
, अपने तन का चन्दन दो 
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन  दो

आँखों से तो छुआ बहुत है

हाथों से भी तो छू-लो

सावन के झूलों में झूली

अब इन बाँहों में झूलों

मेरे अंतर्मन में झाकों

दो है हम
,अब ये भूलो
अधर-अधर अब घुल-मिल जाये
, हल्का-गहरा चुम्बन दो
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन दो

ये जो चाँदनी तुमने अपने
शफ्फाक बदन पर ओढ़ी है

लगता है के ताजमहल की

संगमरमरी ड्योढ़ी है

कायनात से थोड़ी-थोड़ी

सुन्दरता यूँ जोड़ी है

कस लो मुझको मोहपाश में
,अपना गरिमामयी बंधन दो
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन दो


तुम तारों का आभामंडल

आकाश से उतरी गंगा हो

इस रात को ऐसी सहर पे छोड़ो

के
, हर रंग तुममे रंगा हो
ये उज्वल
  तुम्हारी बनावटें
अनसुलझी आकाश-गंगा हो

रात की बातें भोर तलक हो
,सुबह को ऐसा वंदन दो
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन दो
 
तुम बनो देवकी वासुदेव मैं
,मुझको देवकीनंदन दो
तुम खजुराहो की मूरत सी
, प्यार भरा आलिंगन दो








 

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