बुधवार, 6 जून 2012

सूरज के उस काले तिल के नाम .....

:शुक्र-पारगमन:रचनाकार:अमित सर:

सूर्य !कितना क्रोध है,
संताप है तुममें ....

जाने कितनी ज्वाला ...

कितनी आग है तुममें
...
हमेशा धधकते रहते हो....

आग उगलते रहते हो ....

अपनी-ही क्रोधाग्नि में...

कितना जलते रहते हो
???
पर आज अचानक ...

तुम
,कितने शांत हो गए !!!
इतनी नरमी ओढ़ ली ...

कि -

अपने गाल पर ...

काला टिका
लगा बैठे !!!
शुक्र के अणु को ...

खुद में समा बैठे ...

खूबसूरत बन गए ...

काला-तिल लगाकर...

या थक गए थे रोज-रोज ...

अपना दिल जलाकर !!!

सच कहो !!

कहीं तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया !!!

बताओ न !

आखिर कैसे....

तुम्हारा भी दिल खो गया !!!
बताओ न !
आखिर कैसे
???

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