:बचपन सारी उम्र पे भारी होता है !!!:रचनाकार:अमित सर: |
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
पीरियड पर पीरियड ....
रेल -से चलते है ...
ऊँघती क्लासों में भी...
सपने पलते है...
जाने कब ये भारी लम्हें...
कट जाएँगे ?
कब टन-टन-टन कर...
काका बेल बजाएँगे...
कब आजाद होंगे हम....
इस जेल से ...
कब बीच की छुट्टी का...
मजा उठाएँगे !!!
रह-रह कर अहसास यही क्यूँ जगता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
काश कि सारे टीचर....
बच्चे बन जाएँ ...
न डांटें , न मारे....
अच्छे बन जाएँ ....
होमवर्क की सारी झंझट...
मिट जाए....
हँसतें - खेलते लेक्चर ....
सारे हिट जाएँ....
गुरूजी न लगे विलेन के जैसे अब....
सबके-सब रोमांटिक हीरो बन जाए ....
मैडम सारी वैम्प - वैम्प सी लगती है ...
काश के सारी....
मधुबाला-सी हो जाए....
क्यों ये मन सपनों की राह पकड़ता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
वो आख़िरी पीरियड स्कूल का....
भारी होता है....
मन तो लगता नहीं ....
फरारी होता है !!
बस स्कूल छूटने के ...
इंतजार भरे लम्हे वो !!!
तेरे घर तक - का सफ़र ...
फिर जारी होता है....
कैसे समेट लूँ ....
उन अद्भुत लम्हों को मैं .....
क्यों बचपन सारी ....
उम्र पे भारी होता है !!!
स्कूल की खट्टी - मीठी ...
यादों का....
क्यूँ दीपक रह-रहकर सुलगता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
पीरियड पर पीरियड ....
रेल -से चलते है ...
ऊँघती क्लासों में भी...
सपने पलते है...
जाने कब ये भारी लम्हें...
कट जाएँगे ?
कब टन-टन-टन कर...
काका बेल बजाएँगे...
कब आजाद होंगे हम....
इस जेल से ...
कब बीच की छुट्टी का...
मजा उठाएँगे !!!
रह-रह कर अहसास यही क्यूँ जगता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
काश कि सारे टीचर....
बच्चे बन जाएँ ...
न डांटें , न मारे....
अच्छे बन जाएँ ....
होमवर्क की सारी झंझट...
मिट जाए....
हँसतें - खेलते लेक्चर ....
सारे हिट जाएँ....
गुरूजी न लगे विलेन के जैसे अब....
सबके-सब रोमांटिक हीरो बन जाए ....
मैडम सारी वैम्प - वैम्प सी लगती है ...
काश के सारी....
मधुबाला-सी हो जाए....
क्यों ये मन सपनों की राह पकड़ता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
वो आख़िरी पीरियड स्कूल का....
भारी होता है....
मन तो लगता नहीं ....
फरारी होता है !!
बस स्कूल छूटने के ...
इंतजार भरे लम्हे वो !!!
तेरे घर तक - का सफ़र ...
फिर जारी होता है....
कैसे समेट लूँ ....
उन अद्भुत लम्हों को मैं .....
क्यों बचपन सारी ....
उम्र पे भारी होता है !!!
स्कूल की खट्टी - मीठी ...
यादों का....
क्यूँ दीपक रह-रहकर सुलगता है
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है !!!
या के , मैं चाहता हूँ ...
खुद को स्कूल में कैद करना ....
हो सकता है मुझको....
दुनिया से डर लगता है....
इसीलिए तो खो जाता हूँ यादों में ....
मन बार-बार क्यूँ - यूँ मेरा तडपता है ....
जाने क्यूँ मैं कैदी बन जाता हूँ ???
जाने क्यूँ स्कूल कैद - सा लगता है ???
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