रविवार, 3 जून 2012

आम आदमी क्या कर सकता है .....


:चाँद उड़ाकर लाया हूँ : रचनाकार : अमित सर:


खूब मेहनत की है ,खूब कमाकर आया हूँ
मैं चाँद तोड़कर लाया हूँ .....

हम दाना-दाना तरसे थे
जब मेघ यहाँ न बरसे थे
जमीन की छाती सूखी थी
कुँए और नदियाँ भूखी थी
जब फाँकें हमने काटे थे
दुःख ही दुःख तो छांटें थे
FCI  के गोदाम से अनाज चुराकर लाया हूँ
मैं चाँद उठाकर लाया हूँ

क्या थी तड़प गरीबी की
हदें थी बदनसीबी की
बच्चों को तडपते देखा था
एक बच्चा नदी में फेका था
जिन्दा-जिन्दा तडपे थे
बच्चे तो सूखे पडपे थे
नेताजी के बच्चे को किडनैप  कराकर लाया हूँ
मैं चाँद बुझाकर लाया हूँ

कितनी रिश्वत बाँटी थी
एक राशन कार्ड बनाने को
भटका था दफ्तर-दफ्तर
मैं कुआँ खुदवाने को
लकड़ी भी खरीदनी पड़ती है
यहाँ मुर्दों को जलवाने को
उस भ्रष्ट ऑफिसर का सीना छलनी करवाकर आया हूँ
मैं चाँद जलाकर लाया हूँ

सोने की चिड़िया देश मेरा
बस नोच-नोचकर खाया है
घोटालों पर घोटालें है
PM  सबका सरमाया है
मेरी भारत माता पर
इटली की काली छाया है
सत्ता के दलालों का ,मैं वोट कटाकर आया हूँ
मैं चाँद छुड़ाकर लाया हूँ

महंगाई ने तोड़ दिया
चूल्हे ने मुहँ मोड़ दिया
रोटी चाँद में हँसतीं है
दाल सपनो में बसती है
चावल कहता है दूर रहो
गरीब हो तुम मजबूर रहो
मैं नेताजी के रस्ते पर बारूद बिछाकर आया हूँ
मैं चाँद तपाकर आया हूँ

नदियाँ सारी सिकुड़ गयी
साहिलों से बिछुड़ गयी
गंगा ने दम तोड़ दिया
यमुना ने मुहँ मोड़ लिया
जंगल में होटल बन गए
कब नेताओं ने लोड लिया
इन सारे रिश्वतखोरों को नाले में डूबाकर आया हूँ
मैं चाँद धुलाकर लाया हूँ

जेलों में गरीब ही सड़ता है
फूटपाथ पे भूखा मरता है
नेताओं ने LAW का यूज किया
अदालत को कन्फ्यूज किया
तारीखों के खेल के बीच
पैसों का मिसयूज किया
नेताओं की लंका को ,मैं आग लगाकर आया हूँ
मैं चाँद पकाकर लाया हूँ
कुंदन सा तपाकर लाया हूँ
गंगा में डूबाकर लाया हूँ
मैं इसको भगाकर लाया हूँ
शिद्दत से सजाकर लाया हूँ
ये चाँद नहीं मेरा भारत है
इसे खुद को मिटाकर लाया हूँ
मैं चाँद उड़ाकर लाया हूँ
मैं चाँद उड़ाकर लाया हूँ




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें