:मैंने जो भी : रचनाकार :अमित सर:
मैंने जो भी सपने
देखे मेरे सपने
,तेरे सच ....
अपने बीच हुए थे मन में
तेरे - मेरे फेरे सच....
टूटे मन की झूठी बातें
उठते ही आ-घेरे सच....
मैं हूँ आधा अर्ध-सत्य सा
तेरे है सब मेरे सच ....
मेरी दुनिया थी सपनों की
तूने आके बिखेरे सच......
मैंने जो भी सपने देखे
मेरे सपने
,तेरे सच ....
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें