शुक्रवार, 8 जून 2012

मैंने जो भी .....

:मैंने जो भी : रचनाकार :अमित सर:

मैंने जो भी सपने देखे
मेरे सपने
,तेरे सच ....

अपने बीच हुए थे मन में

तेरे - मेरे फेरे सच....


टूटे मन की झूठी बातें

उठते ही आ-घेरे सच....


मैं हूँ आधा अर्ध-सत्य सा

तेरे है सब मेरे सच ....


मेरी दुनिया थी सपनों की

तूने आके बिखेरे सच......


मैंने जो भी सपने देखे

मेरे सपने
,तेरे सच ....

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