मेरी माँ ने जब जनम दिया तब बड़ी सर्दी थी
धूल की चादर माँ ही मफलर बनती थी
सभी भाई-बहन हम मिलकर दूध ढूंढ़ते थे
माँ भूखी थी दूध नहीं दें सकती थी!
गिरते-पड़ते हम निकले तलाश में खाने की
पर पड गई आदत खाना नहीं,गालियाँ खाने की
हम देसी थे,पर अंग्रेजी में "स्ट्रीट डॉग" थे
हमें नहीं इज़ाज़त थी घर में आ जाने की!
हमारी सड़क के उस पार कलेक्टर बंगला था
उसमें लगा एक बड़ा - सा जंगला था
रहते थे वहाँ हस्की-बोस्की डॉगी प्यारे
हम इस पार अपनी ही किस्मत के मारे!
एक दिन प्यार से दुम हिलाते उस पार गया
कलेक्टर साहब के पैरों को चाट लिया
ऐसा उछाला मुझको जैसे फुटबॉल कोई
"ब्लडी गावरानी डॉग" आवाज़ हुई!
क्यों सब बाहर-बाहर सुंदरता को जपते है
हम ही तो सूनी सड़को की रक्षा में खपते है
नहीं घुसने देते मोहल्ले में अजनबियों को
क्यों देखती है दुनिया बाहरी कमियों को?
दिल हमारा भी उतना ही कोमल होता है
वफ़ादारी का जरा न हममें तोटा है
आप की ख़ातिर हम भी मर-मिट सकते है
प्यार से देखिए दिल हम भी जीत सकते है!
पर हम सिर्फ गन्दी गालियों में ही आते है
गली के कुत्ते - गावरानी कहलाते है
हमें मौका कहाँ मिला परिवार में आने का
सहा हमने गम,बस दुत्कारे जाने का!
उस पार कलेक्टर की बच्ची बड़ी प्यारी थी
उसके दिल में ममता बहुत ही सारी थी
चुपके से हमको बिस्किट वो खिलाती थी
अम्मा पीछे से अक्सर डांट लगाती थी!
एक दिन ऐसे ही गुड़िया खाना लाई थी
आजा-आजा कहकर आवाज़ लगाई थी
मै गया दौड़कर प्यार में उसके तेजी से
पर आ गई एक "बस" मुझसे भी तेजी से!
किस्सा ख़त्म!
दौड़ प्यार की ख़त्म हुई!
बस,
ऐसे ही हम खप जाते है....
भूख से प्यार की जंग तक नैन बिछाते है....
दुनिया कहती है...
सड़क के कुत्ते....
कुत्ते की मौत मर जाते है 😒
-अमित अरुण
रविवार, 12 फ़रवरी 2023
तलाश-ए-मोहब्बत 💔
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