रविवार, 4 मार्च 2018

"लोकतंत्र"

"लोकतंत्र"

आइये आँखें खुली रखकर
वो देखते है ,जो दिख नहीं रहा है
वो पढ़ते है, जो अख़बार लिख नहीं रहा है
समझते है भाषणों के पीछे छुपे सत्य को
सुनते है जरा अनकहे कथ्य को
टटोलते है ख़बरों के पीछे छिपे तथ्य को
वर्ना पता नहीं कब कैसे.......
हमसे हमारा "लोकतंत्र" छीन जायेंगा
फिर लकीर पीटने के सिवा
कोई और ऑप्शन नहीं रह जायेंगा
फिर लकीर पीटने के सिवा
कोई और ऑप्शन नहीं रह जायेंगा


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