इस दुनिया में सबसे संकुचित होता है "माँ " का प्यार...
एकदम सीमित...
खुद के बच्चों तक सिमटा...
बच्चों को करता विस्मित...
ऐसी ही एक "माँ" आई थी "देवी माँ " के पास...
अपने नवजात शिशु को शीश नवाने...
"नवजात शिशु " कोमल.... अबोध.... मासूम...
सबके ऐसे ही होते है...
चाहे मानव हो या बेजुबान....
उसी मंदिर के आँगन में...
खेल रहा था नन्हा बच्चा "कुत्ते" का...
कार का लगा रिवर्स गियर...
और एक ही पल में सबकुछ ख़त्म....
बदहवास "बच्चे" की "माँ " कुछ समझ न पाई...
"चाट" रही थी बच्चे को...
सोच रही थी अभी तो खेल रहा था...
"चुप" क्यों है...
"उठा" रही थी...
"जगा" रही थी...
"मना" रही थी...
"जता" रही थी...
"निःशब्द" प्यार...
पर "कार" में बैठी "माँ" को कोई "अफ़सोस" न था....
कोई "शोक" न था...
उसकी गोद में उसका बच्चा था महफूज़ बड़ा...
दूसरी "माँ" का था सड़क पर "बेजान" पड़ा...
"ईश्वर" था मंदिर में खामोश खड़ा...
आस-पास के लोगों में से कोई न लड़ा...
सारी "माँओ" का प्यार है "सिमित"....
अपने-अपने बच्चों तक...
पता नहीं कब बात ये पहुँचे...
अकल के कच्चों तक...
"ईश्वर" मूरत में नहीं....
"भावनाओं" में है....
"प्रेम" आस्था में नहीं...
"संवेदनाओं" में है. 🐕😭🐕
बुधवार, 24 दिसंबर 2025
माँ का प्यार
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