सोचता हूँ कभी-कभी.......
काश के दिल झरोख़ा होता .......
तो झाँक लेते,ताँक लेते .......
क्या चल रहा है, जान लेते .......
क्या होता गर दिल
किसी 'डिजीटल स्क्रीन' की
तरह होता .......
जहाँ फ़्लैश होते रहते 'मैसेज'
जो दिल के अंदर चल रहे है .......
क्या होता गर ऐसा होता ???
क्या फिर सब अच्छा -अच्छा ही सोचते ?
दिख जाने का डर जो होता !!!!
फिर तो मेरी मौज होती ,
पढ़ लेती तुम भी दिल को .......
झाँक लेती मन मे मेरे .......
ताँक लेती चेहरा मेरा .......
जान लेती प्यार मेरा .......
जो मैं कह नहीं पाया हूँ .......
काश दिल एक 'खिड़की' होता .......
काश मन के मैसेज सारे .......
'डिजीटल स्क्रीन' पर चलते रहते .......
मैं तुम्ही को पढता रहता .......
तुम भी मुझको पढ़ते रहते !!!!
काश के दिल झरोख़ा होता .......
तो झाँक लेते,ताँक लेते .......
क्या चल रहा है, जान लेते .......
क्या होता गर दिल
किसी 'डिजीटल स्क्रीन' की
तरह होता .......
जहाँ फ़्लैश होते रहते 'मैसेज'
जो दिल के अंदर चल रहे है .......
क्या होता गर ऐसा होता ???
क्या फिर सब अच्छा -अच्छा ही सोचते ?
दिख जाने का डर जो होता !!!!
फिर तो मेरी मौज होती ,
पढ़ लेती तुम भी दिल को .......
झाँक लेती मन मे मेरे .......
ताँक लेती चेहरा मेरा .......
जान लेती प्यार मेरा .......
जो मैं कह नहीं पाया हूँ .......
काश दिल एक 'खिड़की' होता .......
काश मन के मैसेज सारे .......
'डिजीटल स्क्रीन' पर चलते रहते .......
मैं तुम्ही को पढता रहता .......
तुम भी मुझको पढ़ते रहते !!!!
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