लम्हों में सदियाँ .......
सोमवार, 4 सितंबर 2017
विरह की वेदना है ये
कोई थी! बहुत मानती थी "शिव" को! अचानक चली गयी ... कुछ सोचने का मौका ही न दिया ... अब बैठी है कहीं आसमान में!!! बस उसी की याद में!!!
बिछड़ने का ये किस्सा है
विरह की वेदना है ये
मुझे तो सहना ही है अब
तुम्हारी याद आनी है !!!
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