इक्क कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत
गुम है, गुम है, गुम है
गुम है, गुम है, गुम है
सूरत उसकी परियों जैसी ,
सीरत से वो मरियम लगती
हँसती है तो फूल झड़े है
चलती है तो ग़ज़ल है लगती
लम्बी-लम्बी साँसों जैसी
उम्र लगे है, आग के जैसी
पर नैनों की भाषा समझे
कहती है 'हम' "तुम" है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
जाने कितने जनम है बीते
उसको देखे , उसको जीते
पर लगता है कल ही थी वो
कभी लगे है , आज अभी थी
ऐसा लागे मेरे बगल में
अभी यहीं थी , कहीं नहीं है
जादूगरनी छल है करती
सोच मेरी हैरान बहुत है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
मेरी नजरें बाट है जोहे
क्यों नहीं मिलती है तू मोहे
हर आते-जाते में तुझको
ढूँढ रहा हूँ ,याद संजोये
तेरे चेहरे की रंगत को
तेरी हँसी,तेरी संगत को
मेरी अखियाँ ढूँढे तुझको
ये जो सारा हुज़ूम है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
जब उतरे धूप बाजारों में
महके लोबान गलियारों में
जब दिनभर का ये थका बदन
बैठे जाकर अँधियारों में
तब आती है यादें तेरी
भरने दर्द दरारों में
तब लगता है तनहाई में
तू खुशबू सी महकेंगी अभी
तेरी आवाज़ की आस में दिल
गुमसुम है , गुमसुम है
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
हर पल मुझको ये लगता है
हर दिन मुझको ये लगता है
इन भीड़ भरी सड़कों से वो
या फिर किसी झुरमुट से वो
देंगी इक आवाज मुझे
और मैं उसको पहचानूँगा
फिर वो मुझको पहचानेंगी
लेकिन सच तो ये है कि यहाँ
आवाज़ कोई भी आयी नहीं
और नज़रें भी टकरायी नहीं
मेरी बच्चों जैसी ये सोच भी
कितनी मासूम है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
जाने क्यूँ ऐसा लगता है
फिर मन में शक सा उठता है
इस भीड़-भड़क्के के बीच
तेरा साया संग चलता है
पर है कहाँ वो सोनपरी
ये मन मेरा छलता है।
गुम गया उसके चेहरे में
उसमें मन रमता है।
उसके गम में घुल गया ऐसे
जैसे मोम पिघलता है।
उसकी यादों की किलकारी
सितम है ,सितम है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
प्राणप्रिये तुम्हे मेरी कसम है
उस पगली को उसकी कसम है
उस प्यारी को सबकी कसम है
उस कुड़ी को रब की कसम है
जो तू मुझको पढ़ रही होंगी
जो तू मुझको सुन रही होंगी
इक बार आकर मिल जा मुझसे
मेरी वफ़ा का दाग मिटा दे
नहीं तो मुझसे जिया न जाए
गीत भी अब कोई लिखा न जाए
मेरे गीतों की , साँसों की
तू ही तो तड़पन है .....
इक कुड़ी जिसका नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
सीधी-सादी मुरादों जैसी
निर्मल सी,फरियादों जैसी
साद,मुरादी,सोहणी फब्बत
गुम है , गुम है .....
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत है
गुम है, गुम है, गुम है.....
मूल रचना : श्री शिव कुमार बटालवी (पंजाबी)
हिंदी कृति : अमित अरुण साहू ,वर्धा ७ मई २०१७ शाम ४.५१ (हिंदी)