रचनाकार : अमित सर |
तुम्हारी जुल्फों को खोलूँ .....
पढूँ हाथों से तुम्हें .....
तुम्हारी सारी तहरीरों को ......
करूँ याद आँखों से ......
परत-दर-परत .....
तुममे समाता चलूँ .....
तुम हो जाओ समर्पित ......
मैं अपनाता चलूँ .....
थोड़ी हो जाओ तुम बर्बाद ,मुझे आबाद होने दो .....
आज मुझे थोडा - सा गुस्ताख़ होने दो ......
इन उँगलियों को ....
जरा-सी धडकनें दे दो .....
तुम्हे छूकर गुजरने की .....
इजाज़त ही दे - दो ......
सारी इबारतें .....
बदन की तुम्हारें .....
इन आँखों को पढ़ने की ......
नज़ाकत ही दे दो .....
आई थी जिस तरह .....
इस धरा पर तुम ......
बस वो इक झलक .....
नजरे इनायत ही दे-दो .....
लिपट जाओ बेल सी - मुझे शाख होने दो .....
आज मुझे थोडा - सा गुस्ताख़ होने दो ......
पढूँ हाथों से तुम्हें .....
तुम्हारी सारी तहरीरों को ......
करूँ याद आँखों से ......
परत-दर-परत .....
तुममे समाता चलूँ .....
तुम हो जाओ समर्पित ......
मैं अपनाता चलूँ .....
थोड़ी हो जाओ तुम बर्बाद ,मुझे आबाद होने दो .....
आज मुझे थोडा - सा गुस्ताख़ होने दो ......
इन उँगलियों को ....
जरा-सी धडकनें दे दो .....
तुम्हे छूकर गुजरने की .....
इजाज़त ही दे - दो ......
सारी इबारतें .....
बदन की तुम्हारें .....
इन आँखों को पढ़ने की ......
नज़ाकत ही दे दो .....
आई थी जिस तरह .....
इस धरा पर तुम ......
बस वो इक झलक .....
नजरे इनायत ही दे-दो .....
लिपट जाओ बेल सी - मुझे शाख होने दो .....
आज मुझे थोडा - सा गुस्ताख़ होने दो ......